देहरादून(आरएनएस)। स्कूल-कॉलेज में बच्चों को ज्ञान की सीख देने वाले शिक्षक ही अगर नियमों-कानूनों में लापरवाही बरतने लगें, तो उन बच्चों पर क्या प्रभाव पडेगा? उस कॉलेज और स्कूल परिसर का क्या हाल होगा? सबसे बड़ी बात उस अध्यापक के साथ क्या होगा? ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड के राजकीय महाविद्यालय से सामने आया है। यहां के चार असिसटेंट प्रोफेसर बिना बताए लंबे समय से गैरहाजिर थे। फिर क्या था, यही हम आपको बताते हैं। लंबे समय से बिना बताए आने-जाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसरों के ऊपर आला अधिकारियों का डंडा चल गया है। इसी डंडे के चलते चारो अध्यापकों की छुट्टी कर दी गई है। अधिकारियों ने यहां बताया कि उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. धनसिंह रावत की स्वीकृति के बाद इन सहायक प्रोफेसर की तत्काल बर्खास्तगी के आदेश जारी किए गए। आपको बता दें कि चारों प्रोफेसरों को काफी बार नोटिस भी जारी किए गए हैं, लेकिन उन लोगों ने किसी भी नोटिस का जवाब देना जरूरी नहीं समझा। ना ही वो लोग ड्यूटी पर पहुंचे। इसके बाद ये सख्त कदम उठाया गया।
बर्खास्त किए गए सहायक प्रोफेसर इंद्रजीत सिंह, डॉ. नंदिनी सिंह, ए.के. राय और डॉ. नरेश मोहन चड्ढा हैं। अधिकारियों ने बताया कि डॉ. चड्ढा 2003 से जबकि अन्य तीन 2004 से लगातार अनुपस्थित थे। रावत ने कहा कि राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों में गुणवत्तापरक शिक्षा एवं बेहतर शैक्षणिक वातावरण बनाने के लिए राज्य सरकार तमाम कोशिशों में जुटी है और इसी के तहत लंबे समय से अनुपस्थित रहे चार सहायक प्रोफेसर की सेवाएं समाप्त कर दी गयी हैं।
इस तरह इन प्रोफेसरों की गैरहाजिरी कॉलेज के बच्चों की पढ़ाई में हुई हानी के बारे में तो अंदाजा लगाया ही जा सकता है। इसके साथ ही इतना तो तय हुआ कि राज्य सरकार बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए तत्पर है, लेकिन चड्ढा के मामले में हुई देरी बताती है कि तंत्र ने एक्शन लेने में काफी देर कर दी है।