मेरठ 29 अगस्त (आरएनएस)। एक वो दौर था जब पढ़ाई न करने पर खुद परिवार वाले स्कूल पहुंच जाया करते थे कि और गुरुजी से कहते थे कि पीट-पीट कर सीधा कर दो पढ़ता लिखता नहीं है बस दिन भर शैतानियां और अब यह दौर आ गया है कि बच्चे को यदि टीचर हाथ लगा दे तो उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है। रही सही कसर महनिदेशक स्कूली शिक्षा के फरमान ने पूरी कर दी।
जिसमें बच्चों के सजा देने पर सजा भुगतने के लिए तैयार रहने का फरमान जारी कर दिया गया है। सूबे के परिषदीय स्कूलों में बच्चों को शारीरिक या मानसिक तौर पर दंडित करने को प्रतिबंधित किया गया है। शिक्षा का अधिकार कानून के तहत पहले से ही बच्चों को किसी प्रकार से दंडित किए जाने पर रोक है। प्रदेश सरकार की ओर से इस संबंध में निर्देश जारी किए गए हैं। परिषदीय स्कूलों में पढ़ाई करने वाले छात्रों के लिए शिक्षा विभाग की ओर से बड़ा फैसला लिया गया है।
स्कूलों में अब कोई भी शिक्षक किसी भी छात्र के साथ मारपीट नहीं कर सकता है। छात्रों को मानसिक तौर पर दंडित किया जाना भी प्रतिबंधित किया गया है। शिक्षा विभाग की ओर से जारी आदेश के तहत शिक्षकों की ओर से बच्चों को फटकारना, परिसर में दौड़ाना, चिकोटी काटना, चांटा मारना या घुटनों पर बैठे रहने या मुर्गा बनाने जैसी सजा पर रोक लगा दी गई है। अब दंड देने वाले गुरुजी को कार्रवाई से गुजरना पड़ेगा।
बेसिक शिक्षा निदेशालय ने सभी बीएसए को निर्देश दिए हैं कि स्कूलों में किसी भी स्थिति में बच्चों को शारीरिक और मानसिक दंड न दिए जाए। इस संदर्भ में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से तय गाइडलाइन का हर हाल में पालन हो। स्कूलों को खास तौर पर बताने को कहा गया है कि बच्चों की प्राइवेसी को ध्यान में रखते हुए उनका मीडिया ट्रायल न किया जाए। महानिदेशक स्कूली शिक्षा की ओर से यह निर्देश सभी बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भेजा गया। बीएसए को स्कूलों के प्रबंधतंत्र और सरकारी स्कूलों से जुड़ी समीक्षा बैठकों में इन सभी बिंदुओं को बताने व इसे अमल में लाने के निर्देश दिए गए हैं।