Uncategorized

लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं राजनीतिक टकराव : राज कुमार

संसद के बजट सत्र की हंगामेदार शुरुआत ने इन आशंकाओं को सही साबित कर दिया है कि 18वीं लोकसभा और तीसरे कार्यकाल में मोदी सरकार की डगर आसान नहीं होगी।  संसद के अंदर और बाहर सरकार को कठघरे में खड़ा करने का कोई मौका विपक्ष नहीं छोड़ रहा है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा न मानें, लेकिन बहुमत के आंकड़े से पीछे रह जाने और तेलुगु देशम, जदयू और लोजपा जैसे सहयोगी दलों पर निर्भरता का असर साफ दिख रहा है।  विशेष सत्र में विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ हर मौके पर सरकार पर हमलावर रहा।  दस साल बाद संसद में ऐसा नजारा दिखा।  ध्यान रहे, दस साल बाद ही विपक्ष को राहुल गांधी के रूप में नेता प्रतिपक्ष मिला है।
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान मोदी बनाम राहुल का जो टकराव नजर आया था, वह बजट सत्र में और तीखा होता दिख रहा है।  नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के भाषण के बीच मंत्रियों द्वारा टोकाटाकी और प्रधानमंत्री के जवाब के बीच विपक्ष की लगातार नारेबाजी को उचित नहीं माना जा सकता।  ऐसा लगता है कि संसदीय परंपरा और मर्यादा अब बीते जमाने की बातें बन कर रह गयी हैं।  इसलिए आश्चर्य नहीं कि हम बजट सत्र में भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच उसी टकरावपूर्ण व्यवहार का विस्तार देख रहे हैं।
कोई भी यह स्वीकारने को तैयार नहीं कि संसद देश के हित में काम करने के लिए है, न कि दलगत राजनीति का अखाड़ा बनाने के लिए।  ऐसा पहली बार नहीं है कि सत्तापक्ष अपने बजट को सर्वांगीण विकास का दस्तावेज बता रहा है, तो विपक्ष उसे दिशाहीन कह रहा है, पर बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष सहायता की घोषणाओं ने बजट को राजनीतिक ‘एंगल’ दे दिया है।  विपक्ष ने इसे ‘कुर्सी बचाओ बजट’ करार दिया है।  मोदी सरकार तेलुगू देशम और जदयू के समर्थन पर टिकी है।  आंध्र प्रदेश और बिहार लंबे समय से विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज मांगते रहे हैं।  चंद्रबाबू नायडू इसी मांग पर 2018 में राजग छोड़ कर विपक्ष के खेमे में चले गये थे।  नीतीश कुमार भी अलग-अलग मुद्दों पर कई बार पाला बदल चुके हैं।  दोनों जब राजग में लौटे, तो राजनीतिक जरूरतों के अलावा विशेष आर्थिक मदद की उम्मीद भी बड़ा कारण रही।
मौजूदा प्रावधानों के मुताबिक बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता।  मोदी सरकार ने पहले ही यह संदेश दे दिया था, फिर भी बजट में बिहार और आंध्र प्रदेश को कई मदों में लगभग एक लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता का ऐलान बताता है कि दबाव में और सत्ता की खातिर यह रास्ता निकाला गया है।  इसके लिए कहीं-न-कहीं बड़ी कटौतियां भी की गयी होंगी।  राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आरोप पर वित्त मंत्री ने सफाई अवश्य दी कि बजट भाषण में नाम न लेने का यह अर्थ हरगिज नहीं कि अन्य राज्यों को कुछ नहीं दिया गया, पर विपक्ष संतुष्ट नहीं हुआ।
विपक्ष बजट को अन्य, खासकर गैर-राजग शासित राज्यों के साथ अन्याय और संघीय ढांचे के विरुद्ध बता रहा है।  तृणमूल कांग्रेस सांसद अभिषेक बनर्जी ने 2021 के विधानसभा चुनाव के बाद पश्चिम बंगाल को केंद्रीय मदद पर श्वेत पत्र की मांग कर सरकार को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की।  नोटबंदी और प्रधानमंत्री का उल्लेख करने पर स्पीकर ओम बिड़ला द्वारा टोके जाने पर उन्होंने जिस तरह उन्हें निष्पक्षता की याद दिलायी, उससे तो साफ हो गया कि उनके लिए भी सदन चला पाना आसान नहीं होगा।  अभिषेक से पहले राहुल गांधी और अखिलेश यादव भी अपने-अपने अंदाज में स्पीकर की सर्वोच्चता और निष्पक्षता की ओर इशारा कर निशाना साध चुके हैं।
पिछली लोकसभा में रिकॉर्ड संख्या में विपक्षी सांसदों को निलंबित किया गया था।  सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच बढ़ते टकराव का असर बजट के पारित होने पर शायद न भी पड़े, लेकिन संसद की कार्यवाही पर पड़ना तय है।  संसदीय लोकतंत्र में विश्वास करने वालों के लिए यह चिंता का विषय होना चाहिए।  राज्यसभा में सत्ता पक्ष की घटती संख्या के मद्देनजर ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी की विपक्षी गठबंधन से बढ़ती नजदीकियां भी मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ने का ही संकेत हैं।  पिछले कार्यकाल में इन दलों ने कई मुश्किल मौकों पर राज्यसभा में मोदी सरकार की नैया पार लगवायी थी।
बजट सत्र के बीच ही नीति आयोग की बैठक को ले कर भी सत्तापक्ष और विपक्ष में सीधा टकराव नजर आया।  नीति आयोग की 27 जुलाई को हुई बैठक में दस राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भाग नहीं लिया।  इनमें बिहार के नीतीश कुमार और पुद्दुचेरी के एन रंगासामी के अलावा सभी गैर-राजग दलों के मुख्यमंत्री हैं।  विपक्षी खेमे से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ही बैठक में पहुंचीं, लेकिन पांच मिनट बाद ही माइक बंद कर दिये जोन का आरोप लगाते हुए बाहर निकल आयीं।  नीति आयोग ने हर मुख्यमंत्री के लिए समय आवंटन का स्पष्टीकरण दिया है, लेकिन इस विवाद से सत्ता पक्ष और विपक्ष में टकराव बढ़ेगा ही।  (ये लेखक के निजी विचार हैं। )

Related posts

तरबूज खाएं ही नहीं, चेहरे पर लगाएं भी… ऐसे करेंगे यूज तो कुछ ही दिन में स्किन करने लगेगी ग्लो

newsadmin

बच्चों के दिमाग़ को खोंखला कर रहा मोबाइल, जानें कैसे बदलता है व्यवहार

newsadmin

महाराज ने की विदेश मंत्री एस. जयशंकर से भेंट

newsadmin

Leave a Comment