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कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहा है भारत : राम शर्मा

किसी भी देश के विकास के तौर तरीकों को लेकर विकासवादियों और पर्यावरण वादियों में सदैव बहस होती आई है। विकास का अर्थ क्या है? क्या आधारभूत सरंचनाएं तैयार करना ही विकास है? क्या जैविक जंगलों की बलि देकर कंक्रीट के जंगल तैयार करना ही विकास है? आधुनिक जगत में यह आज भी शोध का विषय है कि सम्यक विकास कैसे हो? यानि देश में पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना कैसे आधारभूत ढांचा खड़ा किया जाए। भारत के संदर्भ में बात करें तो आज तक हम विकास का एक समुचित मॉडल तैयार नहीं कर पाए, जिससे विकास और पर्यावरण में संतुलन स्थापित हो। यही कारण है कि भारत लगातार कंक्रीट के जंगल में तब्दील होता जा रहा है। पर्यावरण संरक्षण कहीं पीछे छूटता जा रहा है। नए विश्लेषण से पता चला है कि 2005-06 से 2022-23 तक पिछले 17 सालों में भारत का निर्मित क्षेत्र लगभग 25 लाख हेक्टेयर तक बढ़ गया है। इस रुझान ने इस अवधि के दौरान देशभर में तीव्र गति से हो रहे शहरीकरण और बुनियादी ढांचे के विकास को उजागर किया।
हैदराबाद में राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) और इसरो द्वारा जारी वार्षिक भूमि उपयोग और भूमि कवर के व्यापक मूल्यांकन में यह बात उभर कर आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, 2005-06 और 2022-23 की अवधि के दौरान निर्मित भूमि में लगभग 31 प्रतिशत की समग्र वृद्धि के साथ बढ़ोतरी देखी गई। इस अवधि के दौरान लगभग 35 प्रतिशत निर्मित क्षेत्र जुड़ गया है, जिसमें भूमि कवर से सालाना लगभग 2.4 प्रतिशत की औसत वृद्धि हुई है, जिसमें बंजर भूमि और कृषि भूमि भी शामिल हैं। भारत के सालाना भूमि उपयोग और भूमि कवर एटलस शीर्षक वाले एनआरएससी मूल्यांकन के अनुसार बंजर भूमि, जिसमें खराब और अनुत्पादक भूमि शामिल है, ने 12.3 प्रतिशत तक निर्मित क्षेत्र के विस्तार में अहम योगदान दिया। एटलस से पता चलता है कि निर्मित क्षेत्रों की वृद्धि का एक बड़ा हिस्सा कृषि भूमि में बदलाव या डायवर्जन के कारण है। रिपोर्ट के मुताबिक, निर्मित क्षेत्र में विस्तार का एक बड़ा हिस्सा कृषि भूमि से उत्पन्न हुआ, जिसमें 6.3 प्रतिशत दोहरी या तिगुनी सालानाए 5.3 प्रतिशत खरीफ की फसल, 3.1 प्रतिशत रबी की फसल, 2.9 प्रतिशत वृक्षारोपण और 5.8 प्रतिशत परती भूमि का हिस्सा शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार तेजी से बढ़ते राज्यों के लिए निर्मित क्षेत्र का रुझान काफी स्थिर प्रतीत होता है, जहां 17 वर्षों में क्षेत्रफल में मामूली वृद्धि हुई है। मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश में निर्मित क्षेत्र में स्पष्ट वृद्धि देखी गई। एनआरएससी एटलस के अनुसार निर्मित क्षेत्र शब्द इमारतों (छत वाली संरचनाओं), पक्की सतहों (सड़कों, पार्किंग स्थल),व्यावसायिक और औद्योगिक स्थलों (बंदरगाहों, लैंडफिल, खदानों, रनवे) और शहरी हरियाली वाले क्षेत्रों (पार्क, उद्यान) से संबंधित है। भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, राज्य और केंद्र पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 2005-06 में 1.28 लाख करोड़ रुपए से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 में 11.92 लाख करोड़ रुपए हो गया। नई सड़कें, राजमार्ग, रेलवे लाइनें और अन्य बुनियादी ढांचे से संबंधित विकास परियोजनाएं इस प्रगति के स्पष्ट संकेत हैं। राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर 2005 से 2023 के बीच गुजरात में (175 प्रतिशत), कर्नाटक में (109 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (94 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (75 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल में (58 फीसदी) राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई बढ़ी।
हालांकि इस तरह का बुनियादी ढांचागत विकास महत्वपूर्ण है, लेकिन ये कृषि भूमि और पर्यावरण की कीमत पर है, जो किसानों के लिए आजीविका का स्रोत है। एनआरएससी एटलस ने भी इसका खुलासा किया है। लेकिन किसानों को पर्याप्त मुआवजा नहीं दिया गया है, ऐसी विकास परियोजनाओं के लिए नाम मात्र के मुआवजे के खिलाफ किसानों ने हाल ही में विरोध प्रदर्शन किया। गुजरात में किसानों ने वापी से शामलाजी तक राष्ट्रीय राजमार्ग 56 के विकास का विरोध किया था। फरवरी 2024 में, मध्य प्रदेश में भी किसान इंदौर के पश्चिमी रिंग रोड और इंदौर-बुधनी रेल लिंक के लिए भूमि अधिग्रहण के विरोध में सामने आए। कुल मिलाकर एनआरएससी एटलस की रिपोर्ट यह संदेश देती है कि हमें भौतिक विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन बिठाते हुए ही काम करना होगा।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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