उत्तराखण्ड

अवैध खनन के खेल को दे रहा है सह कौन, आखिर क्‍यों है जिला प्रशासन मौन

देहरादून(आरएनएस)। राज्‍य की राजधानी में अवैध खनन करने वालें माफियाओं हौसले इतने बुलंद हैं कि दिन दहाड़े नदी में पोकलेन मशीनें उतार कर नदियों का सीना चीरा जा रहा है। जिला प्रशासन को कई बार शिकायत करने के बाद भी माफियाओं पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। यही नही इस अवैध खनन में निकाले गये उप खनिजों को अवैध रूप से भण्‍डारण भी किया जा रहा है लेकिन जिला प्रशासन मौन बना हुआ है। इससे यह तोा यक्ष प्रश्‍न है कि कही इस गोरखधंधे को जिला प्रशासन की मौन सहमति तो नहीं है।
बताते चलें कि उत्तराखंड में अवैध खनन के मामले कैग की रिपोर्ट ने कई सवाल खड़े कर दिए थे।  मार्च 2023 में जारी की गई कैग की रिपोर्ट को शायद अभी अधिकारी भुला नहीं पाए होंगे। जिसमें कैग ने वर्ष 2017-18 से वर्ष 2020-21 के बीच 37 लाख टन अवैध खनन की बात कहकर सभी को चौंका दिया था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि इस अवधि में किए गए अवैध खनन से सरकार को 45 करोड़ रुपये का चूना विशुद्ध राजस्व के रूप में लगा है।
इस बात को छह माह बीत चुके हैं, लेकिन हालात अब भी अधिक बदले नजर नहीं आ रहे। क्योंकि, देहरादून के खनिज विभाग के अभिलेखों में सिर्फ 40 के करीब ही उप खनिज के भंडारण केंद्र वैध हैं। इनमें से अधिकतर विकासनगर क्षेत्र में ही विद्यमान हैं।
अधिवक्ता विकेश नेगी ने जिले खनिज के भंडारण केंद्रों की सूचना कलेक्ट्रेट/खनिज कार्यालय से मांगी थी। उन्होंने आवेदन के साथ शहर के विभिन्न 12 मार्गों पर स्थित उप खनिज भंडारण केंद्रों की सूची भी दर्ज की थी। ताकि इनके पंजीकरण की स्थिति पता चल सके। आरटीआइ आवेदन के जवाब में खनिज कार्यालय ने 40 भंडारण केंद्रों की सूची दी, जिसमें 12 मार्गों पर स्थित खनिज भंडारण केंद्रों का नाम नहीं था। स्पष्ट है कि इन जैसे तमाम भंडारण केंद्र अवैध रूप से संचालित किए जा रहे हैं। ये कहां से उप खनिज लेकर आ रहे हैं और किन्हें आगे बेच रहे हैं, कुछ पता नहीं। ऐसे में सरकार को बड़े पैमाने पर राजस्व की चपत लग रही है।
सरकारी एजेंसी भी संदेह के घेरे में
शहर में बड़ी संख्या में अवैध भंडारण केंद्र संचालित होने के चलते यह उप खनिज की आपूर्ति सरकारी निर्माण एजेंसियों को भी कर रहे हैं। इस स्थिति में सरकारी निर्माण एजेंसियां बिना पास के ही उप खनिज के प्रयोग की अनुमति ठेकेदारों को देती हैं। लिहाजा, ऐसे प्रकरणों में रायल्टी भी जमा नहीं कराई जाती है। कैग ने भी इस तरह के प्रकरण पकड़ते हुए बताया था कि सरकारी निर्माण एजेंसियों ने 37.17 लाख मीट्रिक टन सामग्री के उपयोग की अनुमति बिना पास के दी। जिससे 104.08 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
जीएसटी में 219 खनिज सामग्री विक्रेता पंजीकृत
जिला खनिज कार्यालय ने भले ही 40 के करीब खनिज भंडारण केंद्रों की सूची उपलब्ध कराई हो, लेकिन यह आंकड़ा कहीं अधिक है। क्योंकि, जीएसटी में 219 ऐसे विक्रेता पंजीकृत हैं, जो बालू, ग्रिट, पत्थर, बजरी आदि सामग्री की आपूर्ति करते हैं।

इन मार्गों पर स्थित भंडारण केंद्र नहीं मिले पंजीकृत
आहूजा स्वीट शॉप से फव्वारा चौक होते हुए अंबीवाला गुरुद्वारा तक
लाडपुर सेव रिंग पर छह नंबर पुलिया होते हुए पोस्ट आफिस तक
नेहरुग्राम चौक से नहर वाली रोड, तुनवाला होते हुए मियांवाला चौक तक
रामपुर रोड से नहर वाली रोड होते हुए नेहरू ग्राम तक
रायपुर रोड से नाथुआवाला रोड घोड़ा फैक्ट्री तक
बालावाला क्षेत्र घोड़ा फैक्ट्री से नकरौंदा तक
हर्रावाला से नकरौंदा जीरो प्वाइंट तक
रिस्पना पुल से आईएसबीटी तक
बंगाली कोठी से दून यूनिवर्सिटी तक
बंगाली कोठी से मोथरोवाला तक

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