उत्तराखण्ड

संस्कृत भाषा केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा :   राज्यपाल

देहरादून(आरएनएस) राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) ने बुधवार को देव संस्कृति विश्वविद्यालय, हरिद्वार में “भारतीय भाषाओं की जननी संस्कृत का भाषा वैज्ञानिक पक्ष और तकनीकी शब्दावली” विषय पर आयोजित हो रहे राष्ट्रीय सम्मेलन में प्रतिभाग किया। यह कार्यक्रम वैज्ञानिक एवं तकनीकी शब्दावली आयोग, शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के और देव संस्कृति विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहा है। इस अवसर पर राज्यपाल ने कहा कि देव भूमि उत्तराखण्ड की अविरल माँ गंगा की गोद, तीर्थनगरी और चारों धामों के प्रवेश द्वार-हरिद्वार में स्थित देव संस्कृति विश्वविद्यालय में, देववाणी संस्कृत पर आयोजित इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन होना अत्यंत ही सुखद संयोग है।
राज्यपाल ने कहा कि संस्कृत भाषा केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा है।  देववाणी अन्य भाषाओं की तरह केवल अभिव्यक्ति का साधन मात्र ही नहीं है, बल्कि वह मनुष्य एवं मनुष्यता के समग्र विकास की कुंजी भी है। उन्होंने कहा कि संस्कृत भाषा की वैज्ञानिक संरचना इसे वर्तमान तकनीकी युग में भी अत्यंत प्रासंगिक बनाती है। अब बात सिर्फ कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के नूतन आयामों में संस्कृत भाषा की प्रासंगिकता मात्र का ही नहीं है वरन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस युग में नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग एवं अन्य संबद्ध तकनीकी में भी हो रहे शोध कार्य देववाणी की महत्ता को स्थापित करते हैं। मानवीय सभ्यता के आदि के स्रोत को जानने के लिए संस्कृत भाषा का अत्यधिक महत्व है।
राज्यपाल ने कहा कि बहुत ही सराहनीय है कि देववाणी संस्कृत के दिव्य मंत्र, प्रार्थना एवं श्लोक, गायत्री तीर्थ शांतिकुंज हरिद्वार, देव संस्कृति विश्वविद्यालय एवं विश्व भर में फैले पांच हजार से ज्यादा गायत्री संस्थानों की दैनिक दिनचर्या का अभिन्न अंग हैं। उन्होंने कहा कि माँ गायत्री की प्रार्थना का पवित्र मंत्र ‘‘गायत्री-मंत्र’’ हो अथवा यज्ञ, दीपयज्ञ या संस्कारों में प्रयुक्त होने वाले कर्मकांड के मंत्र, सच्चे अर्थों में पूज्य गुरुदेव ने विश्व मानवता को ऋषि संस्कृति की इस देववाणी से जोड़ कर देव संस्कृति से जोड़ने का उल्लेखनीय कार्य किया है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के विजन “विकास के साथ-साथ विरासत भी” इसके लिए हमें देववाणी संस्कृत के संवर्धन एवं इसे जन-जन की भाषा बनाने की पहल करनी होगी। उन्होंन विश्वास जताया कि देववाणी संस्कृत के माध्यम से देश, पुनः भारतीय ज्ञान परम्परा से जुड़कर विश्व के समक्ष अपनी प्रतिष्ठा पुनर्स्थापित करेगा और “वर्ष 2047 के विकसित भारत“ संकल्पना को साकार करने में संस्कृत भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
राज्यपाल ने कहा कि देववाणी संस्कृत में रचित विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ वैश्विक ज्ञान कोश की अमूल्य निधि है। यह खुशी की बात है कि पुरातन ज्ञान को नूतन स्वरूप में अध्ययन करने हेतु, देववाणी संस्कृत को सीखने की वैश्विक स्तर पर अभिरुचि वर्तमान में तेजी से बढ़ रही है। नालंदा एवं तक्षशिला सरीखे विश्वविद्यालयों का पुनर्जीवन करने, विश्व के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक पुनरोत्थान करने का संस्कृति विश्वविद्यालय का संकल्प बहुत ही सराहनीय है।
इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने बताया कि इस डॉ. दिवसीय कार्यशाला में संस्कृत भाषा के वैज्ञानिक महत्व को उजागर करने के प्रयास किए जाएंगे, कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि एवं वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग भारत सरकार के अध्यक्ष प्रो. गिरीश नाथ झा ने आयोग की गतिविधियों की जानकारी देते हुए बताया कि आयोग द्वारा अब तक विभिन्न शोधार्थियों के माध्यम से 3 लाख से अधिक शब्द व 300 से अधिक शब्द कोश प्रकाशित किए जा चुके हैं। कार्यक्रम में देश एवं विदेश से विभिन्न शोधार्थी एवं शिक्षक उपस्थित रहे।

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