देहरादून(आरएनएस)। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में मूल निवास और सशक्त भू कानून की मांग को लेकर राज्य आंदोलनकारी, राजनीतिक, सामाजिक संगठनों की ओर से आहूत महारैली को फ्लाप करने के लिए जिला प्रशासन ने पूरी ताकत लगा दी। मूल निवास स्वाभिमान महारैली’ में उत्तराखंड क्रांति दल, राज्य आंदोलनकारी, पूर्व सैनिक संगठन, कांग्रेस पार्टी समेत अन्य जिलों से पहुंचे विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक संगठनों से जुड़े लोगों ने भाग लिया। उत्तराखंड में मूल निवास लागू किए जाने और इसकी कट ऑफ डेट 26 जनवरी 1950 घोषित किए जाने के साथ ही सशक्त भू कानून लागू किए जाने की पुरजोर तरीके से मांग उठाई गई। परेड मैदान से महारैली का आयोजन किया गया। वहीं, आयोजन स्थल तक पहुंचने के सारे रास्तों की पुलिस ने नाकेबंदी कर दी। सर्वे चौक, कनक तिराहा, लैंसडौन तिराहा हो या फिर आराघर की तरफ से परेड मैदान तक पहुंचने वाले अन्य रास्ते, सब को बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया गया। मकसद परेड मैदान तक कोई ना पहुंच पाए। इसके बावूजद स्वाभिमान महाराली में जनसैलाब उमड़ पड़ा। हालांकि, पवेलियन मैदान में बीजेपी का कार्यक्रम भी चल रहा था। इसमें पहुंचने का रास्ता साफ था, लेकिन महारैली के लिए जहां लोग एकत्र हो रहे थे, वहां तक पहुंचने वाले सारे रास्तों की नाकेबंदी साफ नजर आ रही थी। रैली स्थल तक या फिर प्रेस क्लब तक पहुंचने के लिए पत्रकारों को भी पापड़े बेलने पड़ गए। ना तो सरकार की मंशा ही कामयाब हो पाई और ना ही जिला प्रशासन के प्रयास। रैली तक पहुंचने के लिए लोगों ने जहां तहां अपने वाहनों को सड़क किनारे पार्क तक दिया। इसके बाद लोग पैदल ही रैली स्थल तक पहुंचे।
मूल निवास और भू कानून की मांग को लेकर परेड ग्राउंड पर आज सुबह से ही लोगों का जुटना शुरू हुआ। मूल निवास और भू-कानून की मांग के साथ लोग एक महारैली का आयोजन के लिए जुटे रहे। खास बात ये रही कि सुबह सैकड़ों की संख्या में दिखने वाले लोग दिन होते-होते हजारों की संख्या में सड़कों पर दिखाई देने लगे। इस आंदोलन में तमाम पार्टियों के लोग भी मौजूद रहे। विभिन्न संगठन से जुड़े कार्यकर्ता भी अपनी बात को नारों के जरिए रख रहे थे। यहां ना तो कोई पार्टी थी और ना ही कोई संगठन की मांग। बस हर कोई भू कानून और मूल निवास 1950 के लागू करने के अधिकार को रख रहा था। महारैली में लोग देहरादून से ही नहीं, बल्कि पहाड़ों से भी लोगों ने मैदान का रुख किया। लोग कह रहे थे राज्य आंदोलन की लड़ाई लड़ने के बाद राज्य तो मिल गया लेकिन नए राज्य की कल्पना जिस मकसद के साथ की गई थी, उसके लिए एक बार फिर आंदोलन करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों को रोजगार से वंचित रखकर दूसरे प्रदेशों के लोग उत्तराखंड के युवाओं की नौकरी पर कब्जा कर रहे हैं।
महारैली में मौजूद लोगों का कहना था कि बाहरी लोग उत्तराखंड में आकर अपना कारोबारि स्थापित कर रहे हैं, लेकिन रोजगार स्थानीय युवाओं के देने के बजाय बाहरी लोगों को बसा रहे हैं। ऐसे में उत्तराखंड बाहरी लोगों द्वारा अपराध की घटनाओं में भी इजाफा हो रहा है। ऐसे में हिमाचल प्रदेश जैसे सशक्त भू-कानून की काफी जरूरत है।