आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों। ये तो होना ही था। लंबे समय से लग रहा था कि हमास कभी न कभी इजराइल पर बर्बर हमला करेगा। नि:संदेह यह हमला इजरायली खुफिया तंत्र की भयावह असफलता है। किंतु हम सब जानते हैं कि अति आत्मविश्वास घातक होता है। इजराइल को भरोसा था कि उसकी दमदार सेना और अतिकुशल सुरक्षा कवच के चलते हमास गाजा पट्टी के बाहर कुछ भी नहीं कर पाएगा। चन्द मुठभेडें हो सकती हैं लेकिन कुछ बड़ा नहीं होगा। हालाँकि मिस्र ने उन्हें आगाह किया था। ऐसी खबरें हैं कि मिस्र – जो इजराइल और हमास के बीच मध्यस्थ की भूमिका अदा करता है – ने चेतावनी दी थी कि गाजा का यह आतंकवादी संगठन कुछ ‘बड़ा’ करने की योजना बना रहा है। लेकिन येरुशलम ने मिस्र की खुफिया संस्थाओं की चेतावनी को बार-बार नजरअंदाज किया। अपना ध्यान वेस्ट बैंक पर केन्द्रित रखा। सिर्फ दस दिन पहले मिस्र के खुफिया विभाग के मंत्री जनरल अब्बास कामेल ने नेतन्याहू को फोन मिलाया था। लेकिन प्रधानमंत्री ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। हालांकि बीबी उर्फ नेतन्याहू ने ऐसी कोई पूर्व चेतावनी मिलने की बात का खंडन किया है और उन्होने राष्ट्र को संबोधित करते हुए ऐसी खबरों को ‘झूठा’ बताया है।
लेकिन ऐसा कभी नहीं होगा या हो सकता, यह मानना ही खुशफहमी थी। मध्यपूर्व हमेशा बिना शांति के रहा है। इस क्षेत्र में राजनैतिक हालात जटिल हैं और फिलिस्तीनी मसला संवेदनशील और पेचीदा रहा है।पश्चिम एसिया के कई देशों की सरकारें इजराइल के साथ संबंध कायम करना चाहती हैं लेकिन फिलिस्तीनियों के अधिकारों का मामला अरब बिरादरी के लोगों के लिए हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। वे मानते हैं कि संबंध सामान्य होने की संभावना बहुत कम है। सात अक्टूबर को हमास द्वारा किया गया रक्तपात अत्यंत निंदनीय है लेकिन यह भी एक सचाई है कि इजराइल ने 56 साल से वेस्ट बैंक पर कब्जा किया हुआ है और मिस्र के साथ मिलकर उसने गाजा पट्टी की घेराबंदी कर रखी है।
फिलिस्तीनी गंदे हालातों में जी रहे हैं। वे हिंसा, बेदखली और अमानवीय स्थितियों का सामना करने को बाध्य हैं। फिलिस्तीनी सरकार के पूर्व सूचना मंत्री डॉ मुस्तफा बरगोती, जो पेलिस्टाइन नेशनल इनिशिएटिव नामक एक लोकतांत्रिक फिलिस्तीनी संगठन का प्रतिनिधित्व करते हैं, और जिनका फतह और हमास दोनों से कोई संबंध नहीं है, ने फरीद जकारिया को दिए गए एक साक्षात्कार में साफ शब्दों में कहा कि यह स्थिति आधुनिक काल के सबसे लंबे समय तक चले कब्जे का सीधा नतीजा है। बेबाकी से अपने विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि हमास का हमला कई कार्यवाहियों की प्रतिक्रिया था, जिनमें फिलिस्तीनियों पर वहां बसे लोगों द्वारा हमले, वेस्ट बैंक से फिलिस्तीनयों के निष्कासन, इजरायली उग्रपंथियों द्वारा मुस्लिम और ईसाई पवित्र स्थलों पर हमले और इजराइल द्वारा अरब देशों से सामान्य संबंध कायम करना शामिल हैं –इन सबको बरगोती ने इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू द्वारा फिलिस्तीनियों के अधिकारों और उनके लक्ष्यों को समाप्त करने का प्रयास बताया है।
तीस साल पहले फिलिस्तीन और इजराइल के बीच ओस्लो शांति समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।एक नई सुबह का उदय हुआ था और नए रिश्तों की शुरूआत व दुश्मनी के खात्मे की उम्मीद जागी थी। वह अब एक सपना भर है। और दोनों पक्ष इस बात पर राजी थे कि पांच साल बाद दोनों समुदाय संप्रभु राष्ट्रों में निश्चित सीमाओं के भीतर बस जाएंगे। और अंतरिम समझौता समाप्त हो जाएगा। लेकिन यह कभी न हो सका।तभी सात अक्टूबर को न केवल ओस्लो समझौते का पूरी तरह खात्मा हो गया बल्कि भविष्य में किसी समझौता वार्ता की संभावना भी समाप्त हो गई। आने वाले दिनों और महीनों में घटनाक्रम क्या रूख लेगा, यह कहा नहीं जा सकता, लेकिन यह एक लंबे युद्ध की शुरूआत है।
बेंजामिन नेतन्याहू ने ‘‘एक बड़ी कीमत” वसूलने का संकल्प व्यक्त किया है। हमास को अपनी करनी का नतीजा भुगतना पड़ेगा और इस प्रक्रिया में उसके नेता इस्मायल हनिए और मोहम्मद डेफ या तो मारे जाएंगे या गिरफ्तार किए जाएंगे। हमास के अधिकारियों का कहना है कि उनका संगठन भी लंबे युद्ध के लिए तैयार है। ज्यादातर कहर गाजा पर बरपाया जाएगा। संयुक्त राष्ट्र संघ का मानना है कि वर्तमान में गाजा में आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों की संख्या सन् 2014 के बाद से सबसे ज्यादा है। गाजा को पहले ही जीवन और रोजमर्रा की सारी मूलभूत सुविधाओं से महरूम कर दिया गया है। गाजा में नागरिकों की मौत को बहुत अनुचित व अन्यायपूर्ण माना जाएगा। इससे दुनिया में इजराइल की प्रतिष्ठा धूमिल होगी और यह वाकई बहुत गलत होगा। लेकिन इजराइल ने प्रतिशोध लेने और गाजा पर दुबारा कब्जा करने का संकल्प लिया है, भले ही इसके नतीजे में हमास उसके अपने लोगों की हत्या कर दे।
मध्य पूर्व लम्बे समय से शांति से वंचित रहा है और लगता है कि उसके सुकून के दिन कुछ, या शायद बहुत दूर खिसक गए हैं।