अल्मोड़ा। भारत रत्न पं. गोविन्द बल्लभ पंत के 136वें जन्मदिवस एवं गोविन्द बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी- कटारमल, अल्मोड़ा के स्थापना दिवस समारोह का शुभारम्भ सांसद अजय टम्टा एवं कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथियों द्वारा पं. गोविन्द बल्लभ पंत की मूर्ति पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन द्वारा किया गया। कार्यक्रम के आरम्भ में संस्थान के निदेशक प्रो० सुनील नौटियाल ने सभी अतिथियों को विषम परिस्थितियों के बावजूद भी इस कार्यक्रम में अपनी सहभागिता हेतु सबका स्वागत करते हुए संस्थान की प्रगति आख्या प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि विगत वर्षों में संस्थान ने जैव विविधता संरक्षण, सामाजिक एवं आर्थिक विकास, जलवायु परिवर्तन तथा जल जमीन संसाधनों के प्रबंधन के क्षेत्र में समन्वित प्रयास किये हैं। संस्थान विभिन्न विकासात्मक परियोजनाओं जैसे हिमालयी क्षेत्र के लोगों की आजीविका वर्धन, जैव विविधता संरक्षण, चीड़ की पत्तियों से विभिन्न सामग्रियों का निर्माण, औषधीय पादपों के उत्पादन के तरीकों को जनमानस तक पहुंचाना तथा पानी के स्रोतों के संरक्षण इत्यादि को धरातल पर उतारने हेतु प्रयासरत है। इस अवसर पर उन्होंने कुली बेगार प्रथा का उल्लेख करते हुए पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त जी के हिमालय क्षेत्र में उनके योगदान के बारे में बताया। उन्होंने संस्थान के आगामी लक्ष्य पर्वतीय पर्यावरण, पारिस्थितिकी और सतत विकास के क्षेत्र में वैश्विक उत्कृष्टता केन्द्र के रूप में विकसित करने से भी सबको अवगत कराया। संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ जे सी कुनियाल ने 29वें पं. गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक व्याख्यान के वक्ता प्रोफेसर मोहम्मद लतीफ खान, वरिष्ठ प्रोफेसर, डॉ. हरिसिंह गौड़ विश्वविद्यालय, सागर, मध्य-प्रदेश का परिचय देते हुए उनके शोध कार्यों का जीवनवृत्त दिया। इसके उपरान्त प्रोफेसर मोहम्मद लतीफ खान ने आवाजों और दृष्टिकोणों का समावेश׃ जंगलों में जलवायु लचीलेपन के लिए समुदायों को सशक्त बनाना विषय पर संस्थान का 29वां पं. गोविन्द बल्लभ पंत स्मारक व्याख्यान प्रस्तुत किया। अपने व्याख्यान में उन्होंने भारतीय वनों में जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता से सबको अवगत कराया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में सांसद एवं कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अजय टम्टा ने संस्थान द्वारा चलाए जा रहे आजीविका वर्धन में सहायक तथा शोध कार्यों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि पं. गोविन्द बल्लभ पंत जैसे प्रखर और संघर्षशील नेता की जन्मस्थली में स्थित संस्थान आज अपने शोध और विकास कार्यों को वैश्विक स्तर पर फैला रहा है जो हम सबके लिए गौरव की बात है। उन्होंने संस्थान से हमारी पुरानी समाप्त होती जा रही परम्परा और रीति रिवाजों को पुनः युवा पीढ़ी के मध्य लेन हेतु उचित दिशानिर्देश और कार्ययोजना बनाने की भी अपील की। उन्होंने कहा इस क्षेत्र की नदियाँ ग्लेशियरों पर निर्भर नहीं हैं अतः कोसी नदी, गरुड़ गंगा और रामगंगा को अगर पिण्डारी से जोड़ा जाय तो सभी नदियों को समुचित पानी मिलता रहेगा। उन्होंने गुंजी जीवंत ग्राम प्रोग्राम पर भी काम करने की बात कही। संस्थान के लिए अपने शोध के माध्यम से नीतिगत निर्णय लेने हेतु नीति निर्माण की भी बात की। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर आर.के. मैखुरी, प्रोफेसर हेमवती नंदन बहुगुणा गढवाल विश्वविद्यालय, ए. के. नौटियाल, संयुक्त सचिव, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार, विशिष्ट अतिथि शेखर घिमिरे, निदेशक प्रशासन, इसीमोड़, काठमाण्डू, प्रो. एस.पी. सिंह, पूर्व कुलपति, हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय ने संस्थान के विकास कार्यों की सराहना की और कहा कि हिमालय पर कार्य करने में संस्थान ने अपनी स्थापना से लेकर आज तक काफी उत्कृष्ट कार्य किए। इस कार्यक्रम में पूर्व विधायक अल्मोड़ा कैलाश शर्मा, प्रो. रमा मैखुरी. प्रो. उमा मेलकानिया, प्रो. कालाकोटी, सी.एम.ओ डा. पन्त, प्रो. खान, प्रो. जे.एस. रावत, डॉ. शिल्पी पॉल, डा. आशा लता, डॉ. ललित तिवारी, डॉ. संजीव, डॉ. वन्दना, पुनीत सचदेवा, राजीव, गजेन्द्र पाठक, स्याही देवी समिति शीतलाखेत, ग्राम प्रधान ज्योली, कटारमल, संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. किरीट कुमार, डा. जे.सी. कुनियाल, डा. आई.डी. भट्ट, डा. पारोमिता घोष, संस्थान के वैज्ञानिकों, अधिकारियों एवं शोधार्थियों समेत लगभग 250 प्रतिभागियों नें प्रतिभाग किया। अन्त में गणमान्य अतिथियों द्वारा संस्थान के प्रकाशनों का विमोचन भी किया गया। समारोह कार्यक्रम का संचालन शोध छात्रा अदिति मिश्रा तथा समापन संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक ई. किरीट कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ।
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