रात का वक्त और बेंगलुरु से हावड़ा जा रही यशवंतपुर हावड़ा ट्रेन के डिब्बे उतरकर दूसरे ट्रैक पर गिरे । इसी दौरान दूसरी ओर से शालीमार चेन्नई कोरोमंडल एक्सप्रेस, दूसरे ट्रैक में गिरे हुए डिब्बों से टकराई 21वीं सदी का यह सबसे भयानक एक्सीडेंट था। यात्री ट्रेन का इंजन और कुछ डिब्बे बगल में खड़ी मालगाड़ी की बोगियों से टकराए। एक साथ तीन ट्रेनों के एक्सीडेंट के कारण दोनों यात्री ट्रेनों में हजारों की संख्या में यात्री सवार थे। वह बुरी तरह घायल हो गए। इस एक्सीडेंट में जो यात्री घायल हुए हैं, उनमें कई यात्रियों के हाथ पैर कट गए। सैकड़ों यात्री लापता बताए जा रहे हैं। दोनों ट्रेन की दुर्घटना इतनी जबरदस्त थी। बचाव कार्य करने जो दल गया, उसे काफी मेहनत करना पड़ी। देर रात तक लगातार बचाव कार्य चल रहा था। मृतकों और घायलों की सही संख्या की जानकारी रेलवे प्रशासन नहीं दे पाया। ट्रेन के डिब्बे कैसे दूसरे ट्रैक में जाकर गिर गए। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है, कि रेलवे द्वारा ट्रेन संचालन में किस हद तक की लापरवाही बरती जा
रही है। इस सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह सामने आ रहा है, जिस तरह ट्रेनों की गति बढ़ाई जा रही है। उस को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा, अधिकारियों कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने में रेलवे घोर लापरवाही बरत रहा है। जिसके कारण लगातार रेल हादसों की संख्या बढ़ती जा रही है। 9 साल में 8 बड़े ट्रेन हादसे हुए हैं। जिनमें अधिकृत रूप से 400 से अधिक यात्रियों की मौत हुई है। 20 नवंबर 2016 को इंदौर राजेंद्र नगर ट्रेन हादसे में 152 से ज्यादा यात्रियों की मौत हुई थी। यह शुरुआती आंकड़े हैं, घटना के बाद बताए जाते हैं। घायलों और मृतकों की संख्या उससे कई गुना ज्यादा होती है। आए दिन ट्रेन हादसे बढ़ रहे हैं। इसमें कर्मचारियों और अधिकारियों की लापरवाही के साथ- साथ, टेक्नोलॉजी पर ज्यादा भरोसा करने के कारण, अनदेखी की जा रही है। उसके कारण रेलवे का सफर जोखिम भरा होता जा रहा है। बालासोर में हुआ ट्रेन हादसा इसलिए भी भयानक है, कि एक ही स्थान पर तीन ट्रेनों का एक्सीडेंट हुआ। इसमें 2 यात्री ट्रेन थी। इसके कई कोच चलती ट्रेन से टूटकर दूसरे ट्रैक पर गिरे। किसी भी दूसरे ट्रैक से आ रही गाड़ी भी दुर्घटनाग्रस्त हुई। दोनों ट्रेनों के कोच बुरी तरह से तबाह हुये। शाम को हुई दो ट्रेनों की भयानक दुर्घटना के बचाव कार्य में काफी विलंब हुआ। यात्री घंटों रोते बिलखते तड़पते रहे। रेल प्रशासन और स्थानीय प्रशासन के बीच में समन्वय नहीं होने के कारण विलंब हुआ। कई घायलों की इलाज 1 मिलने के पहले ही मौत हो गई। रेलवे, जिस तरह से आधुनिकीकरण खूब बढ़ावा दे रहा है। ट्रेनों की गतिशीलता बढ़ा रहा है। उसके साथ यात्रियों की सुरक्षा और रेल आवागमन सुरक्षित हो। इस दिशा में प्रयास तो किए जाते हैं। लेकिन अधिकारियों एवं कर्मचारियों की जिम्मेदारी तय नहीं किए जाने के कारण, रेलवे में लापरवाही लगातार बढ़ती ही जा रही है। रेलवे के अधिकारी और कर्मचारी तकनीकी के ऊपर आश्रित होकर गैर जिम्मेदार होने लगे हैं। जिसका खामियाजा यात्रियों को भुगतना पड़ रहा है।
ट्रिपल ट्रेन हादसा जो हुआ है। ऐसी घटनाएं शायद ही कभी देखने को मिलती हैं। इस ट्रेन हादसे में यात्री ट्रेन
का एक इंजन मालगाड़ी के बोगी के ऊपर चढ़ गया। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है, कि एक ही स्थान पर 3 ट्रेनों के बीच हादसा हुआ। सैकड़ों यात्रियों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसके जिम्मेदार दोषी अधिकारियों, कर्मचारियों और घटना के वास्तविक कारण कभी उजागर नहीं होंगे। सब एक दूसरे को बचाने पर लगे रहेंगे। पिछली घटनाओं के बाद जब रिपोर्ट प्रकाशित होती है। उससे यही साबित होता है, कि अपना पल्ला झाडऩे के लिए एक दूसरे के ऊपर जिम्मेदारी डालकर बचने का प्रयास करते हैं। ऐसी जांच का कोई मतलब भी नहीं होता है।