हरिशंकर व्यास
उफ, वक्त ! पल-पल स्यापा, फिर भी गुजर गए नौ वर्ष। पता नहीं नौ वर्षों में 140 करोड़ लोगों में कितनों के दिन अच्छे थे कितनों की रात लंबी। मुझे तो फुर्सत ही नहीं हुई! मुश्किलों-बाधाओं-वेयक्तिक नुकसानों के बावजूद ये नौ वर्ष जीवन आंनद के इसलिए हुए क्योंकि इस अवधि में आत्म साक्षात्कार हुआ!अनुभुति हुई कि मैं क्या हूं! मैं बतौर पत्रकार, बतौर सनातनी हिंदू क्या हूं? मेरी जैविक-मानसिक रचना के डीएनए की क्या फितरत है? आखिर इंसान कोई हो, उसकी वृति-प्रवृति, प्रोफेशन-कर्म और जिंदगी की सिद्धी तो उस स्वांत सुखाय से ही है जिससे फील हो कि कुछ भी हो हम अपनी राह चले। अपना झंड़ा लिए चले। अपने आत्म सम्मान में जीये!
ये पंक्तियां महामना अज्ञेय की कविता – ‘तुम, चलने देने से पहले’- ‘हट जाओ’ के असर में है!
अज्ञेय ने संभवतया यह कविता इंदिरा गांधी के इमरजेंसी के ठिक पहले लिखी थी। इसकी चार पंक्तियां मेरे, मेरी पत्रकारिता, इस नया इंडिया अखबार और मेरेमिजाज की प्रतिबिंब है। जरा गौर करें- हम न पि_ू हैं न पक्षधर हैं/हम हम हैं और हमें/सफ़ाई चाहिए, साफ़ हवा चाहिए/और आत्म-सम्मान चाहिए जिस की लीक/हम डाल रहे हैं/हमारी ज़मीन से हट जाओ।
सो भले चंद लोग हो, लेकिन उनकी जिंदगी का गुजरा वक्त कई मायनोंमें, नौ वर्षों में सार्थक हुआ है। जाहिर है इन नौ वर्षो के शासन में वह बहुत हुआ है जिससे व्यक्तियों, जातियों, समाज, कौम और राष्ट्र की सच्चाईयां उजागर, जगजाहिर हुई! नौ वर्षों में हिंदू मिजाज, डीएनए की तासीर उद्घाटित हुई। भारत के 140 करोड लोगोंका मनोविज्ञान, बुद्धी, आचरण का पोर-पोर जगजाहिर हुआ। मेरा मानना है कि मई 2014 से पहले का भारत और उसके बाद नरेंद्र मोदी का भारत एक ही सिक्के के दो पहलू है। आईडिया नेहरू का हो या मोदी का, भारत का कुल मिजाज भक्ति, भूख और भयाकुलता का मिक्स है। यही आधी रात के अंधकार से शुरू हुए सफर का स्थाई लबोलुआब।
मोटामोटी नौ वर्षों की येउपलब्धियां गौरतलब है-
*भांड़ा फोड़ा! – हां, यह मोदी सरकार की अतुलनीय उपलब्धि। 15 अगस्त 1947 की आधी रात भारत मेंब्रितानी राजके अवशेषों का जो सत्ता कलश स्थापित हुआ था उसका मोदी राज में भांड़ाफूटा। झूठ एक्सपोज हुए।लोकतंत्र-धर्मनिरपेक्षता-
*पश्चिम से सहभागिता(विदेश नीति)- हां, भारत के दीर्घकालीन हित मेंमोदी सरकार की उपलब्धि। कह सकते है कि मोदी सरकार का रूस और चीन से भी सौदा पटा हुआ है। पर यह नरेंद्र मोदी और जयशंकर को भी शायद अहसास न हो कि ओबामा-ट्रंप-बाइडन, औलांदे-मेक्रोन, आबे-किशिदा, स्कॉटमॉरिसन- अल्बानीज आदि ने नरेंद्र मोदी से गले मिलकर, उन्हे ग्रेट या बॉस कह कर भले नरेंद्र मोदी की भारत में दुकान बढ़वाईहो तो बदले में इन्होने भारत की भीड को, पैदल सेना को अपने एलांयस काचुपचाप पार्टनर भी बनालिया! मैं इसे सभ्यताओं के संर्घष के भावी सिनेरियों में भारत हितकारी मानता हूं। इसलिए क्योंकि भारत को आगे खतरा विस्तारवादी चीन-हॉन सभ्यता, रूसी स्लैविक सभ्यता, इस्लामी सभ्यता से ही है। सो जी-सात देशों के साथ भारत का सामरिक-भूराजनैतिक एलायंस जितना ठोस और भरोसेमंद बनेगा उतना अच्छा है। जान ले इसकी कोशिशे भारत में नरसिंहराव, वाजपेयी, डा मनमोहनसिंह की सरकारों से लगातार है।
*चीन पर फोकस स्थाई (सुरक्षा)- भारत की रक्षा-समारिक नीति में चीन पर स्थाई फोकस मोदी काल की बड़ी बात है। पहले पाकिस्तान केंद्रीत कूटनीति और सैनिक तैयारियां थी। अब दोनों सीमाओं को ले कर सैनिक-सामरिक तैयारियां है। इस बारे में सीमावर्ती इलाकों के इंफ्रास्ट्रक्चर, सैनिक चौकसी, कवायदों तथा सुरक्षा बलों के पुर्नगठन आदि के काम है तो वैश्विक साझा, खुफियाई सहयोग में जो हुआ है वह पर्याप्त न होते हुए भी काफी है।
*लुटियन आउट, भदेस इन- नरेंद्र मोदी से देश की सत्ता देशज व भदेस बनी है। लुटियन दिल्ली में प्रगतिशीलता, धर्मनिरपेक्षता, आधुनिकता का जो अंग्रेजीदां प्रभुवर्ग पंडित नेहरू से बना था और विचार, विमर्श में समाजवादी, वामपंथी बुद्धीजीवियों और नौकरशाहों की जैसी मोनोपॉली थी वह या तो खत्म है या हाशिए में गई है या फिर मोदी की भदेस सत्ता की प्रोपेगेंडा दुकाने बन गई है। यों भाजपा (वाजपेयी-आडवाणी-जेतली-सुषमा आदि) भी लुटियन दिल्ली के एलिट का पार्ट हो गई थी लेकिन मोदी-शाह की आउटसाइडर सच्चाई, उसके प्रभावों से लुटियन दिल्ली का चरित्र बदला है तो वही सत्ता देशज, बिना विचार राजनीति की होने से क्रॉस खरीदफरोख्त की मंडी बनी है। सबकुछ राजा केंद्रीत बाकि सब निराकार। राष्ट्रपति भवन के कोविंद, द्रोपद्री मुर्मू, संसद में ओम बिडला, जगदीप धनकड़ से लेकर केबिनेट-सुरक्षा-भूराजनैतिक-वि
*राजकाज में हिंदी- नौ वर्ष की बड़ी उपलब्धि जो भारत सरकार, पीएमओ, केबिनेट, राष्ट्रपति भवन, नार्थ-साउथ ब्लाक, संसद में हिंदी का सर्वत्र उपयोग। यों नरेंद्र मोदी से पहले हिंदी दबी हुई नहीं थी लेकिन नौकरशाही और लुटियन दिल्ली के अंग्रेजीदा मीडिया ने हिंदी को बिना पॉवर की भाषा बनवाया हुआ था। नरसिंहराव- वाजपेयी के राज में भी हिंदी के उपयोग मेंसंकोच, हीनता, दुविधा थी। जबकि मोदी राज में हिंदी वोट और पॉवर का पर्याय है। इस सबका दूतावासों, कूटनीति, वैश्विक संवाद में धीरे-घीरे ही सही असर बन रहा होगा। कमी सिर्फ संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनने की देरी से है।
*धारा-370 का खात्मा- समाज, देश, व्यवस्था और विश्व सबको मैसेज के नाते बडी उपलब्धि। जम्मू-कश्मीर का पुर्नगठन और धारा-370 की समाप्ति का निर्णय यों भाजपा-संघ परिवार के एजेंडे का घोषित वादा था। वैसे ही जैसे गोहत्या, समान नागरिक संहिता का है। मगर धारा-370 का फैसला इसलिए मील का पत्थर क्योंकि हर कोई मान रहा था कि ऐसा कर सकना राष्ट्र-राज्य के लिए संभव नहीं है। जबकि केंद्र सरकार के एक कागजी आदेश से ही धारा-370 लगने का फैसला हुआ था तो हटाने का फैसला भी चुटकी में संभव था वैसे ही जैसे हुआ है। उस नाते धारा—370 की समाप्ति मानों नामुमकिन का मुमकिन होना।
*अखिल भारतीय परीक्षाएं- मेरी राय में यह देश की शिक्षा व्यवस्था और घर-परिवार सभी के लिए दीर्घकालीन महत्व की बड़ी उपलब्धि। आखिर मेडिकल, इँजीनियरिंग, एमबीए, कॉलेज-विश्वविद्यालयों दाखिले में बच्चों और अभिभावकों को जैसी गलाघोट भागदौड़-मेहनत में उलझे रहना होता था उससे मुक्ति तो मिलती हुई होगी। अखिल भारतीय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं की नई व्यवस्था में कुछ कमिया हो सकती है। संविधान में शिक्षा के राज्य अधिकार का भी तर्क है बावजूद नई व्यवस्था के भविष्य में बहुत फायदे है।
*तिलिस्म-होप- यह तिलिस्म की नित नए जुमलों, नित नए दर्शन-श्रृंगार और नए-नए तरीकों से लोगों में उम्मीद बनवाए रखना की अच्छे दिन आ रहे है। पिछले प्रधानमंत्रियों और नरेंद्र मोदी का बुनियादी फर्क यह है कि मोदी के जादुई पिटारे में न जुमले खत्म होते है और न भाषण। न डमरू-नगाड़ों का शोर घटता है। नतीजतन चौबीसों घंटे जनता और खास कर भक्तों को आशा के नए-नए झुले मिलते है। आजादी के बाद भारत की हर सरकार शासन करते हुए लोगों के मोहभंग, नाराजगी, आंदोलनों, एंटी इस्टेबलिसमेंट के गुस्से का शिकार हुई। लोग निराश-हताश होते थे। लेकिन नरेंद्र मोदी की यह उपलब्धि, है जो लोग, खासकर भक्तगण वर्तमान की तकलीफों के बीच में आगे का यह बुरा सपना लिए हुए होते है कि यदि मोदी नहीं रहे तो क्या बचेगें? यदि मोदी नहीं होते तो अब तक क्या हो चुका होता? नागरिकों की इस मनोदशा को मैं उपलब्धि इसलिए करार दे रहा हूं कि हिंदुओं में उम्मीद की पोजिटिविटी बनी रहना ही बड़ी अनहोनी बात। मेरा मानना है कि उम्मीद-होप में या तो राजीव गांधी की सरकार बनी थी या नरेंद्र मोदी की। लेकिन मोदी की यह उपलब्धि जो उनके तिलिस्म से होप यथावत जिंदा।
*रैवडियां- नौ वर्ष की इस नाते खास बात कि कुछ भी हो सौ करोड लोगों को फ्री राशन, खाते में पांच सौ-हजार रू की चुस्कियां देते रहने का काम भारत में मोदी से पहले या दुनिया में किसी और देश में कहां हुआ है? पहले तमाम प्रधानमंत्री या दुनिया के बाकि देशों के म़ॉडल में संस्थागत विकास से जनता के विकास का आग्रह था और सभी देशों में है भी। हसीना वाजेद ने ऐसे ही कंगले बांग्लादेश का विकास कराया। पर नरेंद्र मोदी के नौ वर्षों में शायद ही कोई महिना या साल गुजरा हो जिसमें देश-प्रदेश के शासनों से, राजनीति के फार्मूलों में नई-नई रैवडियों के आईडिया नहीं बने हो। सिलेंडर की एक रेवड़ी मई 2023 में आज कितनी तरह की रेवडियों में कनवर्ट है!इसके असर के नाते सत्य है कि 140 करोड लोगों की भीड़ रेवड़ी की चुस्कीयों से ही संतुष्ट बनी हुई है।
ये, मेरे हिसाब की नौ उपलब्धियां है। कईयों के लिए सडक बनना, वैक्सीन लगना, नई ट्रैन चालू होना या योजनाएं उपलब्धि होगी। मगर हर सरकार के ये काम वैसे ही होते है जैसे हम पुरखों के अपने पुराने घर में नया बैठक खाना बनाते है। नई छत, शौचालय या रास्ता बनवाते है। असल बात नरेंद्र मोदी के बाद में पच्चीस-पचास साल बाद जब उनकी सरकार का मूल्यांकन होगा तो कसौटी यही होगी कि देश की सुरक्षा, चरित्र, राजनीति और सत्ता मिजाज मेंउनके काम कैसे थे।