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अरे मनुष्य- जि. विजय कुमार

अरे मनुष्य !

सोचो, कहा है आप?

आगे या पीछे

आप आगे समझकर दस गुणा पीछे जा रहे हो।

अरे मनुष्य सोचो !  कहा हो आप?

 

अरे ! क्या कर रहे हो आप?

न्याय और ज्ञान को बेच रहे हो।

अन्याय और

अज्ञान को खरीद रहे हो।

धर्म को भूल कर

अधर्म को अपना रहे हो।

अरे ! मनुष्य क्या कर रहे हो आप?

 

अरे मनुष्य आप क्या पा रहे हो ?

प्यार की जगह पैसा

मात-पिता की जगह मोती, दौलत।

अपना परायी हो गया,

परायी अपना हो गया।

ईर्ष्या  असूया, असत्य, आलसी दोस्त हो गया।

अरे ! मनुष्य क्या पा रहे हो आप?

 

अरे ! मनुष्य आप सुखः मे हो या दुःख में हो।

आप सुखः के लिए ही दुःखी हो।

अरे ! मनुष्य क्या हुआ।

 

उठो, नींद  से उठो।

कब तक नींद में रहते हो?

उठने का समय आ गया।

सोचो और समझो

नही तो, अंतिम क्षण भी आयेगा।

 

अपना समय आ गया।

अरे मनुष्य जागो ! जागो ! जागो !

– जि. विजय कुमार, हैदराबाद, तेलंगाना

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