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चाँद-तारों भरी सुनहरी रात – अर्चना पाण्डेय

neerajtimes.com – मयूरी एक शिक्षिका है। वह हर रोज विद्यालय में मसालेदार स्वादिष्ट चाय लेकर आती है। आज वह चाय नहीं लाई। आइए जानते है कि वजह क्या है?

मयूरी बार- बार मोबाइल को ऑन – ऑफ करती कुछ सोचती, थोड़ा शर्माती दुपट्टे से अपने चेहरे को ढकती। कई बार नींद लेने का प्रयास करती लेकिन आँखों में नींद ही कहाँ थी! और हो भी कैसे, जब वह खास जगह पर है।

ज्यों – ज्यों रात बढ़ रही थी, मयूरी की धड़कन बढ़ रही थी। गोरा चेहरा उसका गुलाबी चेहरा में बदल चुका था।

मनुष्य का जीवन कितना अद्भुत है न, जो वस्तु मिली नहीं है उसकी उसे चाह रहती है और जो मिल जाती है वह हमारे लिए खास मायने नहीं रखती है।

दिन भर की थकान के बाद भी मयूरी बिल्कुल तरोताजा महसूस कर रही है। उसके चेहरे पर एक अनोखी चमक थी, नए जीवन के लिए सुनहरे सपने थे, जो बिना बोले ही बरबस झलक रहे थे।

वह अपनी होने वाली सास के कमरे में थी। और उसका होने वाला पति गौरव बगल के कमरे में। वे सभी अपने रिश्तेदार की शादी में गए हुए थे। शादी से लौटते वक्त समय काफी हो गया। तो क्या था अपनी होने वाली बहुरानी मयूरी को अपने साथ अपने घर लेकर चली आई।

शादी से पहले ही ससुराल में और वो भी रात में।

पर्वत-पहाड़़ से निकलकर नदियाँ जिस तरह उछल कूद करते हुए अपने प्रेमी सागर से मिलने को बेकरार रहती हैं ठीक उसी प्रकार मयूरी बस उस दिन का इंतज़ार कर रही है जब वह गौरव के साथ सात फेरे लेगी। आँखों में लाखों सुनहरे सपने हैं उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए। मयूरी कई बार कमरे से बाहर देखती है वह सुंदर चाँद अपनी स्वच्छ चाँदनी से पूरी सृष्टि को सींच रहा है। कमरे से बाहर फूल का सुंदर बगीचा है। ठीक हाइवे के बगल में ही गौरव का घर है। वह सुंदर फूलों का बगीचा जिसमें अनेकों तरह के फूल खिले हैं रोज मुसाफिरों को आकर्षित करते हैं और आज मयूरी उन फूलों से बात कर रही है। रात्रि का समय 2 बजे कई बार चाँद और कई बार फूलों को देखते वक्त उसे अचानक फोन की घण्टी सुनाई दी।

Gourav calling

मयूरी फोन रिसीव करती है।

ह ह ह ह

गौरव…..

गौरव- मयूरी खिड़़की के बाहर चाँद को देखो न। वह चाँद आज तुम्हारी खिदमत में प्रस्तुत है। आसमान में हजारों तारो सहित तुम्हारा स्वागत कर रहा है। अब तो चाँद भी हमारे साथ तुम्हारा इंतजार करने लगा है जब तुम इस घर की लक्ष्मी बनकर हमेशा के लिए आओगी।

गौरव आगे कहता है:

उन मदमस्त फूलों को देखो न किस तरह वे अपनी गृहस्वामिनी की प्रतीक्षा कर रहे हैं!

जब तुम आओगी, हम और भी फूल लगाएंगे और हर रात इन फूलों की बगिया में सैर करेंगे। चाँद की चाँदनी में हम तुम साथ चलेंगे।

मयूरी, गौरव की बातों में कहीं खो सी जाती है।

मयूरी अभी तक जगी हो, सोई नहीं अचानक उसकी होने वाली सास नींद से उठकर बोलती है।

मयूरी का गुलाबी चेहरा अब लाल हो जाता है।

ह ह ह….

मैं …. सोती हूँ। आप सो जाइए।

सास सो गई।

अब भी मयूरी और गौरव चाँद को एक टक निहार रहे थे। सुबह होने वाली थी। चाँद-तारे विदा लेने की तैयारी में थे।

गौरव फिर फोन करता है: मयूरी, सच में धरा पर स्वर्ग है। हम तुम जहाँ है। वह स्वर्ग है…..

मयूरी भी कहती है- जन्नत कहीं और नहीं

हमारे इर्द – गिर्द है।

थोड़ी देर के लिए दोनों लाॅन में निकलकर आते हैं।

हरी घास चादर नुमा है, मखमल जैसी और झूला भी। चारों तरफ रात के अंतिम पहर का सन्नटा है।  झूले पर दो प्राणी दुनिया की हलचल से बेखबर एक अलग दुनिया में ….

मयूरी और गौरव दोनों बचपन के दोस्त है।

मेरा दिल कहीं है खो गया,

जाने कहां ये चला गया,

मैं न मैं रही मैं ना मैं रही,

जाने ये मुझे क्या हो गया।

 

तू जो मिला मैं बौरा गई,

सुध अपनी भी रही नहीं,

दिल भी तेरा हो गया,

मेरा वजूद ही है मानो मिट गया।

 

अब चाँद में तेरा अक्स दिख रहा,

मेरा साया उससे है मिल गया,

मैं न अब मैं रही तुझ में ही खो गई,

ये क्या मुझे हो गया ये क्या है मुझे हो गया।

– डॉ. अर्चना पांडेय ‘अर्चि’, तिनसुकिया, असम

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