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लगान (कहानी) – समीर सिंह राठौड़

neerajtimes.com – इस वर्ष अल्प वर्षा के कारण सुखाड़ हो गया। किसानों द्वारा लगाए गए फसल बर्बाद होने लगे किसान अंग्रेजी शासन से त्रस्त थे क्योंकि जागीरदारी बंदोबस्ती बिहार ,बंगाल तथा उड़ीसा में लागू था।कंपनी को आमदनी से ज्यादा लगान दिए जाते थे, बहुतरे किसान कर्ज पर कृषि किए थे।अकस्मात सुखाड़ ने गरीब किसानों की स्थिति को बद से बदतर कर दिया। रामदीन जमींदार से इस बार भी फसल लगाने को कर्ज लिए थे उन्हें भरोसा था इस बार अच्छी वर्षा होगी और फसल भी अच्छी होगी, लेकिन प्रकृति ने अपना रुख ही बदल दिया। जमींदार कर्ज माफ नहीं कर सकता उन्हें कोई दया ही नहीं है, और ऊपर से अंग्रेजों द्वारा लगान वसूलना इस बार मौत ही नसीब होगी । रामदीन मन ही मन सोच रहा है,फसल बर्बाद हो चुकी थी, अब जो थोड़ा बचा था वह तो जमींदार के पेट में चला जाएगा । इस तरह हम खेती नहीं कर सकते एक तो अपने पैसों से खेती करते हैं ऊपर से मज़दूरी भी, रामदीन की पत्नी आशा ने रामदीन से कहा। हां ठीक ही कहा तुमने, हम अब खेत वापस कर देंगे लेकिन खाएंगे क्या या पेट कहां मानने वाला गत वर्ष तो खाने भर हो भी गया था परंतु राम रामदीन चिंतित स्वर में कहा क्यों ना हम जमींदार से बात करें शायद वह मान जाए, वह जरूर हमारी मजबूरी समझेंगे आशा ने  कहा। वह तो ठीक है लेकिन अंग्रेजी सरकार भी तो है जमींदार से लगान वसूल आएंगे, गांव-गांव घूमकर लगान वसूले जा रहे हैं सरकारी कंपनी इसी से तो चल रही है।

कितने किसान है जिन्होंने आत्महत्या कर ली, बहुत ऐसे किसान भूमि छोड़ दिए सब के सब मिले हुए हैं ।जमींदार का पेट और ऑफिसर का पेट एक ही है अब गुलामी के सिवा और भी क्या बचा है” रामदीन ने कहा । रामदीन चिंतित होकर कुछ समय तक सोच में डूब जाते हैं उन्हें आगे का रास्ता दिखाई नहीं दे रहा था इधर अंग्रेजी कंपनी जबरन नील की खेती हेतु किसानों को बाध्य कर रहा थी, नील की खेती से अंग्रेजों को अत्यधिक मुनाफा था वह इसे इंग्लैंड जैसे देशों में भेज देते थे , नील की खेती से भूमि की उर्वरक क्षमता पूरी तरह नष्ट हो गई थी भारत में नील का उपयोग नाम मात्र था यहां भुखमरी थी ,किसान को अनाज होगा ताकि उसके पेट की ज्वाला शांत हो सके चारों तरफ हाहाकार मचा था । गांधी जी जगह जगह आंदोलन के बिगुल फूंक रहे थे लेकिन छोटे गांव कस्बों के किसानों की आवाज दबी जा रही थी उन्हें सुनने वाला कोई नहीं था मजबूर किसान अपना कर्ज चुकाते चुकाते मर जाते। भुखमरी की लूटपाट बढ़ने लगा रामदीन तथा आशा दोनों ने फैसला किया कि वह जमींदार से मिलकर कर्ज माफी हेतु निवेदन करेंगे दोनों जमींदार के आवास पर जैसे ही पहुंचा तो वहां पहले से ही अंग्रेजी अफसर बैठकर शराब पी रहे थे जमींदार भी उसकी जी हुजूरी में लगे थे। रामदीन -चलो अब इस समय ठीक नहीं है हमें गाली के सिवा और कुछ भी नहीं मिलेगा देखो यहां धमाचौकड़ी लगा है । अरे कोई बात नहीं आज फैसला कर ही लो हम कब तक भागेंगे आखिर सामने तो आना ही होगा इससे बेहतर है कि अभी ही कुछ किया जाए आशा ने कहा। ठीक है चलो अब ऊपर वाले की इच्छा जो करें रामदीन अपनी पगड़ी को उतारकर हाथ में लिए चौकड़ी के पास पहुंचा “रामदीन  क्या बात है ? आजकल तुम दिखते नहीं फसल कब तैयार कर रहे हो ? जमींदार ने राम सिंह से कहा मालिक इस बार तो सुखाड़ के कारण फसल मिट्टी पलीत हो गया , खाने पर भी आफत है अब आप लोग इस भूखे को जो सजा दें, रामदीन डरते हुए कहा। क्या का फसल बर्बाद हो गया? तो लगान कैसे भरे जाएंगे ? और हां तुम्हें तो कर्ज भी चुकता करना है, किसी कीमत पर पैसे पहुंचा दो अन्यथा…जमींदार ने गुस्साते हुए कहा।” यह सारे इडियट हैं इसकी भूमि छीन लो और गाँव से निकाल दो” हमें लगान चाहिए लगान…..अंग्रेजी अफसर ने कहा। रामदीन और आशा पत्थर की बनी मूर्ति से प्रतीत हो रहे थे समझ में नहीं आ रहा था क्या करें तभी अंग्रेजी अफसर ने कहा सुनो अब तुम कारखाने में काम करोगे और अपना कर्ज चुकाआगे , करीब 2 वर्ष तुम्हें काम करना होगा ।

नहीं हुजूर मुझे ऐसी सजा ना दी जाए मेरे परिवार भूखों मर जाएंगे हम घर बार बेच कर आपके कर्ज अदा करेंगे “रामदीन ने कहा । आशा की आंखों से आंसू गिरने लगे और दोनों अफसर के कदमों में गिर गया। अफ़सर ने जोर की लात मारी जिससे रामदीन का सिर फट गया और रक्त बहने लगा ।शायद रामदीन अपना कर्ज चुका दिया। आशा रामदीन को उठाने लगी परंतु रामदीन फिर नहीं उठ पाया वह ठंडा हो गया था। आशा रामदीन  से लिपट कर जोर से विलाप करने लगी रामदीन के माथे  के लाल रक्त धरती की प्यास बुझा रहा था।

– समीर सिंह राठौड़, बंशीपुर, बांका, बिहार

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