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कविता – जसवीर सिंह हलधर

जन्नत है आभासी दुनिया, विश्व स्वर्ग का मेला है ।

विश्व गुरू भारत है मेरा ,शेष जगत तो चेला है ।।

मृत्यु लोक धरती को कहते , वो कितने अज्ञानी हैं ।

हूर छलावा है जगवालों ,झूठी गढ़ी कहानी हैं ।।

जन्नत एक मज़हबी धोखा , इसका खंडन करता हूँ।

स्वर्ग सरीखी भारत की, धरती का वंदन करता हूँ ।।

पारब्रह्म की रचना यह जग ,वो ही सबका सृष्टा है ।

दूजा कवि है शब्द उपासक ,शेष जगत तो दृष्टा है ।।

एक ओर है गृहस्थ दूसरे में,सन्यास समाया है ।

भारत ज्ञान प्रकाश क्षेत्र है , ऋषियों ने बतलाया है ।।

धन्यवाद है भूतकाल को , वर्तमान को खास किया।

नगपति के चरणों में मुझको, रहने को आवास दिया ।।

वैसे तो भारत माता के सभी क्षेत्र ही पावन हैं ।

नगपति , गंगा ,ब्रह्मपुत्र के, दृश्य बहुत मन भावन हैं ।।

भिन्न भिन्न भाषा बोली हैं,सजी हुई है फुलवारी ।

मौसम के अनुकूल फसल , फूलों की हैं सुंदर क्यारी ।।

भिन्न भिन्न हैं जाति धर्म , दिखता फिर भी विन्यास नहीं ।

रहते हैं सब साथ साथ मन में कुंठा संत्रास नहीं ।।

अभिलाषा है बार बार , भारत में जन्मूं मर जाऊं ।

ऐसा दान शारदा देना ,कविता जीवन भर गाऊं ।।

मैंने अपनी कविता में शब्दों का हार बनाया है ।

भारत भू के अध्यासन को ही आधार बनाया है ।।

इच्छा है सौ बार जन्म लेकर भी सैनिक बन पाऊं।

अपने देश धर्म की खातिर दुश्मन सम्मुख तन जाऊं ।।

आदम की बात अगर मैं, जीव जंतु भी हो पाया ।

पीपल, नीम, कपूर ,अश्व ,गज शेर,बैल हूँ चौपाया ।।

चाहे कुछ भी रूप मिले ,पर रखना  मेरा मान सही ।

भारत में ही जन्म मिले , मुझको देना वरदान यही ।।

मुझको नेता या अभिनेता , होने की भी चाह नहीं ।

टाटा , अंबानी जैसा हूँ इसकी भी परवाह नहीं ।।

मेरे दिल की धड़कन भारत,निलय कहूँ आलिंद कहूँ ।

मेरा तो भगवान राष्ट्र ,गोविंद कहूँ या हिंद कहूँ ।।

जन्म मरण भारत में होवे,केवल इतनी अभिलाषा ।

टूटे फूटे भाव जोड़कर , लिख दी अपनी परिभाषा ।।

देवो का आशीष , ओज वाणी सौभाग्य अखंड मिला ।

दून नगर का वास और रहने को उत्तराखंड मिला ।।

जैसा विषय ध्यान में आया ,उस पर कविता लिख डाली ।

“हलधर”कविता ठीक लगे तो , पाठक ,श्रोता अब ठोको ताली ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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